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MCLR में बढ़ोतरी करके SBI ने ग्राहकों को दिया झटका

देश के सबसे बड़े बैंक SBI ने हाल ही में एलान किया है की बैंक आज से MCLR में बढ़ोतरी करने जा रहा है जिससे लोन और भी महंगा हो जायेगा | कितना पड़ेगा फर्क, आइये विस्तार से जानते हैं 

 
MCLR में बढ़ोतरी करके SBI ने ग्राहकों को दिया झटका

Haryana Update : देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने अपने ग्राहकों को जोरदार झटका दिया है. स्टेट बैंक ने 25 जुलाई से मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) में पांच बेसिस प्वाइंट (BPS) बढ़ाने का ऐलान किया है. SBI की वेबसाइट के मुताबिक, MCLR आधारित दरें अब 8 फीसदी से 8.75 फीसदी के बीच होंगी. MCLR में बढ़ोतरी के बाद लोन महंगे हो जाएंगे. बता दें होम लोन और ऑटो लोन समेत ज्यादातर कंज्यूमर लोन इसी एक साल की एमसीएलआर से जुड़े होते हैं.

MCLR में बढ़ोतरी करके SBI ने ग्राहकों को दिया झटका

महंगे हो जाएंगे लोन

स्टेट बैंक ने कर्ज की दरों को उस समय में बढ़ाने का फैसला किया है, जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने रेपो रेट को 6.50 फीसदी की दर पर बनाए रखा है. MCLR बढ़ने से सबसे ज्यादा झटका ग्राहकों को लगेगा, क्योंकि अब उन्हें अपने लिए गए होम लोन और ऑटो लोन के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा. इस बढ़ोतरी के बाद उन कर्जदाताओं की मासिक किस्त (EMI) बढ़ जाएगी, जिन्होंने MCLR आधारित कर्ज लिया है. इस इजाफे से उन कर्जदारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जिन्होंने अन्य स्डैंडर्ड बेस्ड लोन लिया होगा. 

MCLR की दर

बेसिस प्वाइंट में हुई इस बढ़ोतरी के बाद एक साल के MCLR की दर 8.55 फीसदी हो गई है. इससे पहले ये दर 8.50 फीसदी पर थी. ज्यादातर लोन MCLR दर से जुड़े होते हैं. एक महीने और तीन महीने के लिए MCLR की दर 8 फीसदी और 8.15 फीसदी हो गई है. इसमें भी 0.05 फीसदी का इजाफा हुआ है. वहीं, छह महीने के लिए MCLR की दर 8.45 फीसदी होगी. कर्ज की दरों में किए गए इस बदलाव का असर न केवल नए ग्राहकों पर होगा, बल्कि पुराने ग्राहकों की जेब भी ज्यादा ढीली होगी.

क्या होता है MCLR?

मार्जिनल कॉस्ट लेंडिंग रेट्स या एमसीएलआर दरअसल, RBI द्वारा लागू किया गया एक बेंचमार्क होता है, जिसके आधार पर तमाम बैंक लोन के लिए अपनी ब्याज दरें तय करते हैं. जबकि Repo Rate वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है. 

आरबीआई की ओर से रेपो रेट के कम होने से बैंको को कर्ज सस्ता मिलता है और वे एमसीएलआर में कटौती कर लोन की EMI घटा देते हैं. वहीं जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है तो बैंकों को कर्ज आरबीआई से महंगा मिलता है, जिसके चलते उन्हें एमसीएलआर में बढ़ोतरी का फैसला लेना पड़ता है और ग्राहक पर बोझ बढ़ जाता है.  

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