Mughals Holi: किसी ने भरी होंदी मे शराब तो किसी मुगल राजा ने ऐसे मनाया होली का त्योहार

Mughals Holi : मुगलिया दौर में होली को Eid-e-Gulabi और Aab-e-Pashi कहा गया। मुगल सल्तनत (Mughal Empire) में मनाई जाने वाली होली में मुस्लिम भी हिस्सा लेते थे, इसका जिक्र इतिहासकारों (historians) ने अपने दस्तावेजों में किया है।
Mughals Holi in India: भारत में मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) की नींव डालने वाले बाबर (Babur) ने जब पहली बार हिन्दुस्तान (Hindustan) के लोगों को होली खेलते देखा तो हैरान रह गया। उसने देखा कि कैसे हिन्दुस्तानियों (Indians) के लिए होली रंगों का उत्सव (Festival of Colors) है और यहां के लोग हौदिया में रंग वाले पानी को भरकर उसमें लोगों को फेंक रहे हैं।
बाबर ने शराब से मनाई होली- Mughals Holi
बाबर (Babur) के लिए होली का उत्सव (Holi Festival) हैरान करने वाला था। 19वीं सदी के इतिहासकार मुंशी जकाउल्ला ने अपनी किताब Tarikh-e-Hindustan में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि बाबर ने देखा कि Indians लोग रंगों से भरे हौदिया में लोगों को उठाकर पटक रहे हैं। बाबर को होली और इसके खेलने का तरीका इतना पसंद आया कि उसने हौदिया को शराब से भर दिया।
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अकबर को था इस चीज का शौङ्क
मुगलों में होली (Holi Festivals in Mughal Empire) का आकर्षण कई पीढ़ियों तक जारी रहा। अकबर के नौरत्नों में शामिल Abul Fazal ने Ain-e-Akbari ने होली से जुड़ी कई बातों का जिक्र किया है। अबुल फजल ने लिखा, अकबर को होली के उत्सव से बेहद अच्छा लगता था। उनका लगाव इस बात से समझा जा सकता है कि वो सालभर ऐसी चीजें इकट्ठा कराते थे जिससे रंगों का छिड़काव और पानी को दूर तक फेंक सके। होली के दिन Akbar अपने महल से बाहर आते थे और हर आम शख्स के साथ होली खेलते थे।
शाहजहां ने कुछ इस तरह मनाई होली
जहांगीर (Jahangir) के दौर में होली के मौके पर संगीत की विशेष महफिलों का आयोजन किया जाता था। तुज्क-ए-जहांगीरी के मुताबिक, Jahangir आम लोगों के साथ होली खेलना पसंद नहीं करते थे, लेकिन संगीत की विशेष महफिल में हिस्सा जरूर लेते थे। किले के झरोखे से लोगों को रंग खेलते हुए देखना बहुत पसंद करते थे।
होली के उत्सव को भव्य बनाने का काम शाहजहां (Shah Jahan) के दौर में हुआ। शाहजहां आम लोगों के साथ भी होली खेलते थे और उन्होंने इसे शाही उत्सव में भी तब्दील कर दिया था। उनके दौर में ही होली को ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी के नाम दिये गए।
इतना ही नहीं, इस दिन के लिए मुगलों के अंतिम बादशाह Bahadur Shah Jafar ने विशेष गीत लिखे थे जिसे होरी नाम दिया गया था। उनके गीत उर्दू गीतों की एक श्रेणी बन गई थी। जफर ने लिखा था कि ‘क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी, देखो कुंवरजी दूंगी मैं गारी।’ एक उर्दू अखबार जाम-ए-जहनुमा ने 1844 में लिखा जफर के शासन में होली के लिए विशेष इंतजाम किए जाते थे। टेसू के फूलों से रंग बनाए जाते थे और बादशाह अपने परिवार के साथ रंगों के उत्सव में खो जाते थे।