Summer Effect: गर्मी बढ़ने से गेंहू पर छाया संकट

Summer Effect: तापमान में बढ़ोतरी का असर गेहूं की फसल पर पड़ने का अंदेशा है। मौसम में आए बदलाव के कारण असिंचित इलाकों में गेहूं के उत्पादन में 30-40 फीसदी की कमी आ सकती है।
पिछले साल भी फरवरी और मार्च में अचानक तापमान बढ़ने से गेहूं की पैदावार पर भारी असर पड़ा था।
इस बार भी स्थिति तरह बनने लगी है। पिछले साल गेहूं के दाने का आकार काफी छोटा रह गया। हालांकि, पहले इसका असर गेहूं पर नहीं दिखा, जब थ्रेसिंग शुरू हुई तो उत्पादन पर असर देखा।
जिला सिरमौर (Summer Effect) में फरवरी में ही तापमान 25 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने लगा है। आने वाले समय में इसमें और बढ़ोतरी होगी। इस बीच यदि अच्छी बारिश नहीं हुई तो इस साल भी उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा सकती है।
कृषि विभाग की मानें तो कुछ जगह पीला रतुआ रोग के आसार जताए गए हैं। इस खतरे को लेकर सर्विलांस टीम का गठन किया गया है।
उधर, कृषि उपनिदेशक राजेंद्र ठाकुर ने कहा कि तापमान बढ़ने का गेहूं पर अभी ज्यादा असर नहीं है। आने वाले एक दो सप्ताह के भीतर अच्छी बारिश नहीं हुई तो फसल पर असर पड़ेगा।
गेहूं पर पीला रतुआ का हमला
जिला हमीरपुर में पूर्व में सूखे के कारण गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा तो अब पीला रतुआ के कारण गेहूं की फसल खराब हो रही है।
जिले में सिंचाई सुविधा भी न के बराबर है। पीला रतुओं के कारण पीला पाउडर उड़कर पेड़-पौधों के पत्तों और लोगों के घरों की छतों पर भी पहुंच रहा है।
उधर, कृषि विभाग हमीरपुर के उपनिदेशक डॉ. अतुल डोगरा ने कहा कि पीला रतुआ से जिले में करीब सात फीसदी नुकसान हुआ है।
तापमान बढ़ता रहा तो सूख सकती हैं 25 फीसदी तक पेयजल योजनाएं
जल शक्ति विभाग के अधिकारी कहते हैं कि तापमान बढ़ता रहा तो प्रदेश की पेयजल योजनाओं का जलस्तर घट सकता है। इस बार बारिश और बर्फबारी उम्मीद के अनुसार न होने से पानी के सोर्स रिचार्ज होने में दिक्कत होगी।
तापमान तेजी से बढ़ रहा है और लोगों को मार्च मध्य से ही पानी की किल्लत से जूझना पड़ सकता है।
फलों की सेटिंग और आकार पर पड़ेगा असर : चौहान
प्रदेश फल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने कहा कि फरवरी में कम बारिश होने और तापमान बढ़ने से गुठलीदार फलों और सेब की सेटिंग बिगड़ेगी। फलों का आकार घटेगा। नए विकसित बगीचों में पेड़ सूखने की समस्या रहेगी।
फूल गोभी, मटर और अन्य फसलों पर भी पड़ेगा असर
राज्य के कृषि अधिकारी कहते हैं कि दो हफ्ते तक बारिश नहीं होती है तो बारिश पर निर्भर किसानों की फसलों खासकर गेहूं, जौ, बंद गोभी, फूल गोभी, मटर टमाटर सहित चना और अरहर की दालों पर पड़ सकता है। नुकसान को लेकर फील्ड से रिपोर्ट भी मांग ली है।
पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने से चेरी का घट सकता है 25 से 50 मीट्रिक टन उत्पादन हिमाचल की चेरी पर इस साल सूखे की मार पड़ने का अंदेशा है।
बगीचों में नमी न होने के कारण चेरी उत्पादकों को इस साल उत्पादन प्रभावित होने का डर सता रहा है। इतना ही नहीं, सूखे के कारण हिमाचल की चेरी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।
प्रदेश में सालाना 300 से 350 मीट्रिक टन चेरी का उत्पादन होता है। इस साल सर्दियों में पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने से सूखे के कारण 25 से 50 मीट्रिक टन तक चेरी उत्पादन घट सकता है।
शिमला जिले के नारकंडा के चेरी उत्पादक अजय कैंथला ने कहा कि इतना सूखा पहले कभी नहीं देखा। तेज धूप से तापमान में समय से पहले बढ़ोतरी हो गई है।
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मार्च सूखा गया तो फ्लावरिंग सही नहीं होगी। पॉलीनेशन न होने से सेटिंग प्रभावित होगी। चेरी का आकार छोटा रह सकता है, फल में जूस भी कम रहेगा।
फ्रूट ग्रोवर कोऑपरेटिव मार्केटिंग सोसायटी जरोल के सदस्य शमशेर ठाकुर ने कहा कि सूखे के कारण तापमान बढ़ने से गुठलीदार फलों में समय से पहले फ्लावरिंग हो गई है।
चेरी में भी जल्दी फ्लावरिंग हुई तो फसल प्रभावित (Summer Effect)होगी। प्रदेश में शिमला जिले के अलावा कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों में चेरी पैदा होती है।
प्रदेश में सेब के साथ चेरी उत्पादन बागवानों की आर्थिकी में अहम भूमिका निभा रहा है। शिमला जिले की चेरी हवाई मार्ग से महाराष्ट्र और गुजरात तक भेजी जाती है। इसके अलावा रिलायंस और बिग बास्केट जैसी बड़ी कंपनियां भी चेरी की खरीद करती हैं।
शिमला जिले में नारकंडा, कोटगढ़, बागी, मतियाना, कुमारसेन और थानाधार चेरी की पैदावार के सबसे बड़े केंद्र हैं। सेब की तुलना में चेरी को काफी अधिक कीमत मिलती है। चेरी 150 से 350 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। बागवानी विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. डीआर शर्मा ने बताया की (Summer Effect) बारिश न होने के कारण बगीचों में नमी की मात्रा कम है। सूखे की स्थिति अगर लंबी चलती है तो चेरी की फसल को नुकसान पहुंच सकता है। बागवान बगीचों में मलचिंग कर सकते हैं। ऐसा करने से हल्की बारिश होने पर भी पौधों को पर्याप्त नमी मिल सकती है।
निचले क्षेत्रों में सेब के पेड़ों पर समय से पहले खिलीं गुलाबी कलियां
हिमाचल में तापमान बढ़ते ही फरवरी में सेब के पेड़ों में गुलाबी कलियां खिलने लगी हैं। अमूमन मार्च के दूसरे हफ्ते में ऐसी अवस्था सेब के पेड़ में आते रहे हैं।
जनवरी और फरवरी में सामान्य से 30 फीसदी बारिश न होने से धीरे-धीरे तापमान बढ़ने लगा है। बगीचों में नमी कम होने के कारण सेब के पेड़ों पर गुलाबी कलियां खिलने से बागवानों की चिंता बढ़ गई है।
मार्च और अप्रैल में भी बारिश कम होती है तो सेब उत्पादन पर संकट खड़ा हो जाएगा। बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बारिश होती है तो तापमान थोड़ा नीचे जाएगा तो बागवानों को थोड़ी राहत मिलेगी।
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