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ये हैं भारत के सबसे बड़े दानवीर, हर दिन बांटते हैं करोड़ों रुपये

देश की बड़ी टेक कंपनियों में से एक, wipro के संस्थापक Azim premji को देश का सबसे बड़ा दानवीर कहा जाता है | क्या है इसके पीछे की वजह, आइये जानते हैं 

 
ये हैं भारत के सबसे बड़े दानवीर, हर दिन बांटते हैं करोड़ों रुपये

Haryana Update : अज़ीम प्रेमजी (Azim Premji) आज 78 साल के हो गए हैं. 24 जुलाई 1945 को जन्‍में प्रेमजी की पहचान एक सफल बिजनेसमैन और दानवीर के रूप में है. केवल 21 साल की उम्र में ही बिजनेस में उतरने वाले अज़ीम प्रेमजी ने पहले अपने पिता से विरासत में मिले वनस्‍पति तेल और साबुन के कारोबार को संभाला और बाद में देश की बड़ी आईटी कंपनियों में शामिल विप्रो (WIPRO) की नींव रखी. अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्‍सा दान करने वाले अजीम प्रेमजी देश के सबसे बड़े दानवीर हैं. ब्लूमबर्ग के अनुसार, अजीम प्रेमजी 2.02 लाख करोड़ रुपये (Azim Premji net worth) की नेट वर्थ के साथ इस समय देश के 5वें सबसे अमीर आदमी हैं. पद्मभूषण से नवाजे जा चुके प्रेमजी का जीवन सादगी, ईमानदारी, साहस और मेहनत का जीता-जागता उदाहरण है.

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अज़ीम का जन्म एक बिजनेसमैन के घर हुआ था. उनके पिता मोहम्मद हाशिम प्रेमजी बर्मा (अब म्यांमार) के बड़े चावल कारोबारी थे. उन्हें राइस किंग ऑफर बर्मा (Rice King of Burma) कहा जाता था. बर्मा से वे भारत आ गए और गुजरात में चावल का कारोबार शुरू किया. 1945 में अंग्रेजों की कुछ नीतियों की वजह से उन्हें अपना चावल का कारोबार बंद करना पड़ा. अज़ीम प्रेमजी के पिता जी ने 1945 में वनस्पति घी बनाने का काम शुरू किया और एक कंपनी बनाई जिसका नाम था- वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रॉडक्ट्स लिमिडेट (Western Indian Vegetable Products Limited). यह कंपनी वनस्पति तेल और कपड़े धोने वाला साबुन बनाती थी.

21 साल की उम्र में संभाला कारोबार


अजीम प्रेमजी ने मुंबई में स्कूली शिक्षा ली और फिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electrical Engineering) करने अमेरिका स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (Stanford University) चले गए. 1966 में जब वे स्टैनफोर्ड में पढ़ाई कर रहे थे तो उनके पिता का देहांत हो गया और उन्‍हें भारत वापस आना पड़ा. मात्र 21 वर्ष की उम्र में अज़ीम प्रेमजी ने कंपनी की कमान संभाली. कुछ शेयरहोल्‍डर ने यह कहकर उनका विरोध किया कि वे अनुभवहीन है और कंपनी नहीं चला पाएंगे. लेकिन, प्रेमजी ने हौसला नहीं हारा और कंपनी का नेतृत्‍व किया. इसके बाद कारोबार को ऊंचाइयों पर ले गए.

IT कंपनी Wipro का उदय


1977 तक कारोबार काफी फैल गया और अज़ीम प्रेमजी ने कंपनी का नाम बदलकर विप्रो (Wipro) कर दिया. सन् 1980 के बाद आईटी कंपनी आईबीएम (IBM) भारत से कारोबार समेटकर निकली तो अज़ीम प्रेमजी ने अपनी दूरदृष्टि से पहचान लिया कि इस क्षेत्र में बहुत अवसर होंगे. Wipro ने एक अमेरिकी कंपनी सेंटिनल कंप्यूटर्स (Sentinel Computers) के साथ मिलकर माइक्रोकंप्यूटर्स बनाने का काम शुरू कर दिया. सेंटिनल कंप्यूटर्स के साथ टेक्नोलॉजी शेयरिंग का एग्रीमेंट था. कुछ समय बाद विप्रो ने अपने हार्डवेयर को सपोर्ट करने वाले सॉफ्टवेयर बनाने का काम भी शुरू कर दिया. आज विप्रो का बाजार पूंजीकर 2.12 लाख करोड़ रुपये है.

देश के सबसे बड़े दानवीर


अज़ीम प्रेमजी ने अपनी कमाई का मोटा हिस्सा परोपकारी कार्यों में लगाया. वे अपने हिस्से के 60 फीसदी से ज्यादा शेयर उनके नाम से चल रहे फाउडेंशन के नाम कर चुके हैं. अजीम प्रेमजी फाउंडेशन भारत के कई राज्यों में स्कूली शिक्षा से लेकर कई अन्य कार्यों में जुटा है. अज़ीम प्रेमजी ने 2019-20 में परोपकार कार्यों के लिए हर दिन करीब 22 करोड़ रुपये यानी कुल मिलाकर 7,904 करोड़ रुपये का दान दिया. एडलगिव हुरुन इंडिया फिलैन्थ्रॉपी लिस्ट 2022 के मुताबिक अजीम प्रेमजी ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 484 करोड़ रुपये का दान दिया था.

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